उत्तराखंड के विकास की दृष्टि और संसदीय परंपराओं कीअपूरणीय क्षति

वैली समाचार, देहरादून।

(प्रमोद शाह, पुलिस अधीक्षक की फेसबुक वॉल से)

-उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए इंदिरा हृदयेश का महाप्रयाण एक बड़ी क्षति है ।
वर्ष 1974 में शिक्षक कोटे से उत्तर प्रदेश विधान परिषद में पहुंच कर, जिस प्रकार उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बतौर विधान परिषद सदस्य श्रीमती इंदिरा हृयदेश ने अपनी जो पहचान बनाई थी । वह बेमिसाल थी।  उत्तर प्रदेश के शिक्षक और कर्मचारी संगठनों की लड़ाई में उत्तर प्रदेश स्तर पर लगातार सक्रिय रहकर आपने जो संदेश दिया था । उससे उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में उनके अनुभवी और बड़े कद का नेता होने के निहितार्थ छिपे थे । जिसे 20 साल की उत्तराखंड की राजनीति में आपने हर क्षण साबित किया , पिछले 20 वर्षआप उत्तराखंड की राजनीति में लगातार प्रासंगिक बनी रही, आपके बगैर उत्तराखंड की राजनीतिक चर्चा अधूरी रही ।

मेरी आप से पहली मुलाकात बतौर शिक्षक नेता 1996 में गोपेश्वर में हुई, उन दिनों राज्य आंदोलन अपने चरम में पहुंचने के बाद थोड़ा ढलान पर था ,आम जनमानस में यह धारणा मजबूत हो गई थी, कि देर सबेर उत्तराखंड राज्य का गठन होना है ।
अपनी मारुति 1000 गाड़ी से जब थका देने वाली यात्रा के बाद आप गोपेश्वर पहुंची … तो एक राजनीतिक दृष्टि संपन्न राजनेता के रूप में आपने कहा था, उत्तराखंड भले ही छोटा राज्य बनने जा रहा है, लेकिन इसकी चुनौतियां बहुत बड़ी हैं सबसे बड़ी चुनौती तो सड़कों का निर्माण ही है. सड़कों के निर्माण के साथ विकास खुद पहुंचने की स्थिति में आ जाता है।
यह संयोग ही था कि उत्तराखंड में जब 2002 में पहली निर्वाचित सरकार चुनी गई तो उसमें आप लोक निर्माण तथा संसदीय कार्य मंत्री बनी.. और यह दोनों विभाग आपके व्यक्तित्व में रचे बसे थे । जिस प्राथमिकता से अपने पहले कार्यकाल में आपने उत्तराखंड में सड़कों के निर्माण को प्राथमिकता दी ..उस उच्च प्राथमिकता ने उत्तराखंड के दूरदराज और पिछड़े हुए क्षेत्र तक की विकास यात्रा को आसान किया ।
बतौर संसदीय कार्य मंत्री नवोदित राज्य में संसदीय परंपराओं को मजबूत रखना विपक्ष और पक्ष को राज्य हित के मुद्दों पर साथ बैठकर काम करने की परंपरा को आगे बढ़ाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया, उसके महत्व और चुनौतियों को आप बखूबी जानती थी। इसीलिए जब 2016 में उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार को संकट पैदा हुआ, तो आपने अपने राजनीतिक मतभेदों के बाद भी हरीश रावत सरकार के समर्थन में अपने पूरे संसदीय अनुभव का इस्तेमाल किया, मजबूती से उनके साथ खड़ी रहीं। विधायिका के टिटबिट्स से ही एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सरकार पुनः बहाल हुई उस दृढ़ता और विश्वसनीयता ने आपके दृढ़ संकल्प को जग जाहिर किया और आयरन लेडी के आपके लोक नाम को सार्थक भी किया ।

विकास और संसदीय परंपराओं की दृष्टि से अभी हमारा राज्य शुरुआती दौर में है ,ऐसे समय में आपका यूं अचानक चला जाना राज्य के विकास की दृष्टि और संसदीय परंपराओं की अपूरणीय क्षति है । विधाता की मर्जी के आगे किसकी चली है हम प्रभु की इच्छा को स्वीकार करते हैं प्रार्थना करते हैं भगवान परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे विनम्र श्रद्धांजलि 💐💐

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