उत्तराखंड का दुर्भाग्य, पांच साल से पहले खोए पांच विधायक और मंत्री, पढ़िए पूरी खबर…..
वैली समाचार, देहरादून।
उत्तराखंड में विधानसभा में 2017 में चुनाव जीते सदस्यों ने पांच साल से पहले अपने पांच कद्दावर साथी खो दिए हैं। यह दुर्भाग्य 21 साल पूरे न कर पाने वाले उत्तराखंड के इतिहास में भी जुड़ गया है। अभी तीन विधानसभा में उप चुनाव हो चुके हैं। लेकिन दो विधानसभा में महज कुछ माह के कार्यकाल के चलते चुनाव होंगे, इसे लेकर संशय बना हुआ है। इसके अलावा सांसद से मुख्यमंत्री बने तीरथ रावत भी किस विधनसभा से चुनाव लड़ेंगे, इस पर भी मंथन चल रहा है।
उत्तराखंड विधानसभा में दुर्भाग्य नहीं छोड़ रहा पीछा
उत्तराखंड ने नेता विपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के रूप में मौजूदा विधानसभा में अपना पांचवां सदस्य खो दिया है। इससे पूर्व 2017 के विधानसभा चुनाव में थराली, पिथौरागढ़, सल्ट और गंगोत्री से जीते विधायकों का भी आकस्मिक निधन हो चुका है। इसमें से पहले तीन के लिए उपचुनाव भी हो चुका है। चौथी विधानसभा के अंतिम वर्ष तक भी दुर्भाग्य सदन का पीछा नहीं छोड़ रहा है। इस विधानसभा में अब तक पांच सदस्यों का आकस्मिक निधन हो चुका है। जो साढ़े चार साल के कार्यकाल में एक दुखद रिकॉर्ड है। इससे पूर्व थराली विधायक मगन लाल शाह, पिथौरागढ़ से विधायक और मंत्री प्रकाश पंत, सल्ट से विधायक सुरेंद्र सिंह जीना और गंगोत्री विधायक गोपाल रावत का निधन हो चुका है। उक्त चारों विधायक सत्ताधारी भाजपा के निर्वाचित हुए थे। अब नेता विपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के रूप में पांचवें विधायक का निधन हुआ है।
सीएम चुनाव लड़ेंगे तो होंगे चार चुनाव
उत्तराखंड में पौड़ी संसदीय सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत तीन माह पहले मुख्यमंत्री बने। संवैधानिक प्रक्रिया के तहत छह माह के भीतर उनको भी विधायक बनना है। ऐसे में उनके लिए भी सुरक्षित सीट तलाशी जा रही है। यदि मुख्यमंत्री चुनाKव लड़ेंगे तो सांसद का भी उप चुनाव होगा। जबकि कुछ माह पहले गंगोत्री विधायक गोपाल रावत के निधन से सीट खाली चल रही है। यहां भी उप चुनाव को लेकर स्थिति साफ नहीं है। आज नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश का भी निधन हो गया है। ऐसे में यहां उप चुनाव होगा, इसे लेकर भी अटकलें शुरू हो गई हैं।हालांकि जानकारों का मानना है कि सिर्फ छह माह के लिए यानी चुनावी साल में उप चुनाव कराए जाने से कोई फायदा नहीं है।
कोरोना संक्रमण भी बड़ी बाधा
उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण से सरकार बड़ी मुश्किल से उभरी है। अभी हाल ही में डेढ़ माह के विकराल संक्रमण से पूरा सरकारी सिस्टम बैठ गया था। ऐसे में तीसरी लहर की चेतावनी के बाद उप चुनाव कराने में बड़ी बाधा होगी। चुनाव आयोग ने पहले ही कुछ राज्यों में कोरोना के चलते पिछले माह चुनाव कराने से साफ इंकार कर दिया था। ऐसे में यदि उत्तराखंड में भी यही स्थिति रहती तो सरकार सीधे 2022 में आम चुनाव कराने को प्राथमिकता देगी।