सुख, समृद्धि और खुशहाली का पर्व है उत्तराखंड का फूल देई
देहरादून। उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार कई अनेक पर्व मनाए जाते हैं । यह पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं , वहीं पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए हैं । इन्हीं खास पर्वो में शामिल “फुलदेई पर्व” उत्तराखंड में एक लोकपर्व है | उत्तराखंड में इस त्योहार की काफी मान्यता है | इस त्योहार को फूल सक्रांति भी कहते हैं, जिसका सीधा संबंध प्रकृति से है । इस समय चारों ओर छाई हरियाली और नए-नए प्रकार के खिले फूल प्रकृति की खूबसूरती में चार-चांद लगा देते है | हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने से ही नव वर्ष होता है और नववर्ष के स्वागत के लिए खेतो में सरसों खिलने लगती है और पेड़ो में फुल भी आने लग जाते है | उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार “फूलदेई” मनाया जाता है , जो कि बसन्त ऋतु के स्वागत का प्रतीक है।। चैत्र के महीने में उत्तराखंड के जंगलो में कई प्रकार के फूल खिलते है , ये फूल इतने मनमोहक व् सुन्दर होते है कि जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है | इस फूल पर्व में नन्हे-मुन्ने बच्चे प्रातः सूर्योदय के साथ-साथ घर-घर की देहली पर रंग बिरंगे फूल को चढ़ाते हुए घर की खुशहाली , सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं अर्थात जिसका मतलब यह है कि हमारा समाज फूलों के साथ नए साल की शुरूआत करे । इसके लिए बच्चो को परिवार के लोग गुड़, चावल व पैसे देते हैं | ज्योतिषियों के मुताबिक यह पर्व पर्वतीय परंपरा में बेटियों की पूजा, समृद्धि का प्रतीक होने के साथ ही “रोग निवारक औषधि संरक्षण”के दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। फुलदेई पर्व के दिन एक मुख्य प्रकार का व्यंजन बनाया जाता है जिसे “सयेई” कहा जाता है | फूलों का यह पर्व कहीं पूरे चैत्र मास तक चलता है , तो कहीं आठ दिनों तक । बच्चे फ्योंली, बुरांस और दूसरे स्थानीय रंग बिरंगे फूलों को चुनकर लाते हैं और उनसे सजी फूलकंडी लेकर घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। भेंटस्वरूप लोग इन बच्चों की थाली में पैसे, चावल, गुड़ इत्यादि चढ़ाते हैं । घोघा माता को ” फूलों की देवी” माना जाता है । फूलों के इस देव को बच्चे ही पूजते हैं। अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की बड़ी पूजा करते हैं और इस अवधि के दौरान इकठ्ठे हुए चावल, दाल और भेंट राशि से सामूहिक भोज पकाया जाता है।
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फुलदेई पर्व के मौके पर बच्चे गीत गाते हैं।
फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई
मंगल गीतों के बोल का अर्थ :-
फूल देई – देहली फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो ।
छम्मा देई – देहली , क्षमाशील अर्थात सबकी रक्षा करे ।
दैणी द्वार – देहली , घर व समय सबके लिए दांया अर्थात सफल हो ।
भरि भकार – सबके घरों में अन्न का पूर्ण भंडार हो ।
इस दिन से लोकगीतों के गायन का अंदाज भी बदल जाता है , होली के त्यौहार की खुमारी में डूबे लोग इस दिन से ऋतुरैंण और चैती गायन में डूबने लगते हैं । ढोल-दमाऊ बजाने वाले लोग जिन्हें बाजगी, औली या ढोली कहा जाता है । वे भी इस दिन गांव के हर घर के आंगन में जाकर गीतों गायन करते हैं , जिसके फलस्वरुप उन्हें घर के मुखिया द्वारा चावल, आटा या अन्य कोई अनाज और दक्षिणा देकर विदा किया जाता है ।
(साभार-सोशल मीडिया)