उत्तराखंड में एक लाख की रिश्वतखोरी में एनएच के ईई समेत दो इंजीनियर गिरफ्तार
वैली समाचार, देहरादून।
उत्तराखंड विजिलेंस डीआईजी अरुण मोहन जोशी के मार्गदर्शन में भ्र्ष्टाचारियों पर लगातार बड़ी कार्रवाई में जुटी है। आज विजिलेंस की हल्द्वानी टीम ने रिश्वतखोरी में नेशनल हाईवे रानीखेत अल्मोड़ा के अधिशासी अभियंता(ईई) महिपाल कालाकोटी और सहायक अभियंता (एई) हितेश कांडपाल को एक लाख रुपये रिश्वतखोरी में रंगेहाथ गिरफ्तार किया है। विजिलेंस की टीम दोनों से पूछताछ कर रही है। विजिलेंस के निदेशक वी विनय कुमार और डीआईजी अरुण मोहन जोशी ने ट्रैप टीम को इनाम देने की घोषणा की है।
विजिलेंस के एसपी मुख्यालय धीरेंद्र गुंज्याल ने बताया कि हल्द्वानी टीम ने यह कार्रवाई की है। उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा निवासी शिकायत कर्ता ने बार खोलने के लिए एनएच समेत अन्य विभागों से एनओसी मांगी थी। सभी ने एनओसी जारी कर दी थी। जबकि एनएच के इंजीनियरों ने एनओसी लटका दी। इस पर आरोपियों ने बार संचालक से रिश्वत की मांग की। आज बार संचालक पहले से तय हुए सौदे के अनुसार एनएच के दफ्तर पहुंचा। जहां एक लाख की रिश्वत ईई को सौंपी। ईई ने यह रकम एई को सौंपी। मौके पर विजिलेंस की ट्रैप टीम ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। आरोपी अधिशासी अभियंता का नाम महिपाल कालाकोटी और सहायक अभियंता का नाम हितेश कांडपाल है। दोनों को गिरफ्तार कर देहरादून विजिलेंस कोर्ट में पेश किया जाएगा। आरोपियों का घर और दफ्तर में विजिलेंस ने जरूरी फाइलें और दस्तावेज जब्त किए हैं। प्रोपर्टी और बैंक खातों की जानकारी जुटाई जा रही है।
हरिद्वार में आबकारी इंस्पेक्टर और बाबू को किया था गिरफ्तार
विजिलेंस ने एक माह के भीतर 4 भ्र्ष्टाचारियों को जेल भेज दिया है। 22 जून को हरिद्वार में पुलिस कर्मी से चिकित्सा प्रतिपूर्ति बिल पर हस्ताक्षर करने वाले स्वास्थ्य विभाग के बाबू को जेल भेजा है। जबकि हरिद्वार में ही आबकारी इंस्पेक्टर को 35 हजार रिश्वतखोरी में गिरफ्तार किया था। आज हल्द्वानी में एनएच के दो इंजीनियर को गिरफ्तार कर विजिलेंस ने बड़ी कार्रवाई की है।
सीबीआई से आगे निकली विजिलेंस
उत्तराखंड में विजिलेंस भ्राष्टाचारियों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई में जुटी है। जबकि सीबीआई दो साल से सुस्त नजर आ रही है। सीबीआई में बैंक फ्रॉड के मुकदमे दर्ज होने के अलावा बड़े भ्राष्टाचारियों पर कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि उत्तराखंड में 40 से ज्यादा बड़े केंद्रीय संस्थान हैं। ऐसा नहीं कि इनमें भ्र्ष्टाचार हो रहा हो, लेकिन यह भी नही। कह सकते कि लोगों के काम आसानी से हो रहे होंगे।