गैरसैंण में 45 साल पहले डॉ शिवानंद नौटियाल ने रखी थी पहाड़ के विकास की नींव
-उत्तरप्रदेश में कर्णप्रयाग विधानसभा से पहले विधायक बनने पर नापी थी गैरसैंण की पगडंडियां
-1974 में भराड़ीसैंण में खोला दिया था विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र, आज बदहाल स्थिति में
-पहाड़ी राज्यों में पशुपालन के क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि लाने की थी यह महत्वपूर्ण योजना
संतोष भट्ट, गैरसैंण (चमोली)
जिस गैरसैंण को उत्तराखंड सरकार ने राज्य गठन के 20 साल बाद ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया है, उसके विकास की नींव शिक्षाविद और उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री रहे डॉ शिवानन्द नौटियाल ने 45 साल पहले रख दी थी। आज सरकार ने भले ही राजनीतिक नफा नुकसान के लिए यह फैसला लिया हो, लेकिन स्व. नौटियाल ने 1974 में यहां विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र की स्थापना कर दी थी। उनका सपना था कि यहां पशुओं की नस्ल सुधार कर देश के पहाड़ी राज्यों में पशुपालन के क्षेत्र में आर्थिक क्रांति लाई जाए। लेकिन राजनेताओं की अदूरदर्शी सोच से यह कार्य आगे बढ़ने की जगह सिर्फ दूध की डेयरी तक सिमट गया।
उत्तरप्रदेश के समय कर्णप्रयाग को अलग विधानसभा बनाया गया था। तब यहां से डॉ शिवानंद नौटियाल पहले विधायक बने थे। उन्होंने चुनाव जीतते ही पहाड़ के विकास की चिंता के साथ पगडंडी नापनी शुरू कर दी थी। 1974 में लखनऊ जाते ही उन्होंने अपनी योजनाएं सरकार के समक्ष रखी थी। इन योजनाओं में गैरसैंण के भराड़ीसैण में विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र भी शामिल थी। उनकी यह योजना सरकार को पसंंद आई तो मुहर लग गई। इसके बाद वह सीधेे गैरसैंण पहुंचे और इसकी नींव रख दी। समय पर भवन आदि क निर्माण हुुआ तो 1979 में उन्होंने इसका उदघाटन भी कर दिया। तब डॉ नौटियाल ने क्षेत्र के लोगों से कहा था कि एक दिन गैरसैंण देश के नामचीन स्थानों में शामिल होगा। उन्होंने यहां मसूरी और नैनीताल जैसे पर्यटन की संभावना को भी देखा और इसके विकास की कई योजनाएं बनाई थी। आज सरकार ने गैरसैंण केे नाम पर अलग राज्य का दर्जा पानेे के 20 साल बाद यहां सिर्फ ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर पहाड़ के विकास को गति देने की कोशिश की हैं। यदि यहां स्थायी राजधानी बनी तो निश्चित ही पहाड़ के गांव तक विकास की किरण पहुंचेगी और उत्तराखंड राज्य गठन की मंशा पूरी होगी। डॉ शिवानन्द नौटियाल जैसे विकास की सोच रखने वाले हमारे राजनेता यदि इस दिशा में आगे आये तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड राज्य देश में विकास और तरक्की में नई इबारत लिख देगा।
सीमांत क्षेत्र में खोले स्कूल
डॉ शिवानन्द नौटियाल की देन है कि उत्तप्रदेश में रहते हुए उत्तराखंड के सीमांत ज़िलों में प्राथमिक से लेकर शिक्षा का विकास हुआ है। उनके द्वारा स्थापित स्कूल आज भले ही जीर्ण-शीर्ण हाल में हो, लेकिन पहाड़ में शिक्षा को लेकर उनकी चिंता दस्तावेजों में देखी जा सकती है। उनकी कई पुस्तक पहाड़ के इतिहास, लोक कला, संस्कृति और विरासत को संजोए हुई हैं।
गैरसैंण के पक्ष में रहे डॉ नौटियाल
कर्णप्रयाग विधानसभा सीट का दो दशकों से अधिक समय तक प्रतिनिधित्व करने वाले उप्र के पूर्व मंत्री स्वर्गीय डॉ. शिवानंद नौटियाल ने उत्तराखण्ड राज्य अलग होते समय उसके साथ हो रहे भेदभाव और उपेक्षा के संदर्भ में एक खुला पत्र लिखा था। डॉ. नौटियाल ने इस पत्र में कहा था कि, ‘सभी पार्टियों ने उत्तराखंड संघर्ष के काल में जिला चमोली और अल्मोड़ा के सीमान्त क्षेत्र गैरसैंण को राजधानी के रूप में स्वीकार भी कर लिया था। राष्ट्रपति शासन काल में तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल बोरा ने 25 लाख की धनराशि स्वीकृत कर इस क्षेत्र का राजधानी के लिये सर्वेक्षण भी करवा दिया था। भाजपा के मंत्रियों ने ढोल नगाड़ों के बीच गैरसैंण को उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी बनाने की घोषणा कर दी थी। मगर, अब यहां ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा देकर भाजपा जहां नफा देख रही है, वहीं इसके नुकसान भी कम नहीं हैं।