गैरसैंण उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित
-विजय बहुगुणा सरकार ने सबसे पहले गैरसैंण में आयोजित किया था सत्र
-हरीश रावत सरकार ने भी गैरसैंण को रखा था अपनी प्रथमिकता में
-मुख्यमंत्री रावत की घोषणा से असहज दिखे सुविधाभोगी अफसर और नेता
देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। अब ग्रीष्मकालीन में यहां विधानसभा सत्र नियमित चल पाएंगे। इधर, ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा कर सीएम ने विपक्षी पार्टियों से बड़ा मुद्दा छीनते हुए इतिहास रच लिया है। हालांकि सरकार के इस फैसले से अफसर असहज दिख रहे हैं। गैरसैंण में बुधवार को उत्तराखंड बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने बड़ी घोषणा कर दी। राज्य बनने के 18 सालों से इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक संगठन आंदोलन कर रहे थे। कांग्रेस सरकार में सबसे पहले मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने यहां टैंट में विधानसभा का आयोजन किया। इसके बाद यहां कुछ व्यवस्थाएं जुटाई गई। हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद यहां विधानसभा सत्र आयोजित हुए। रावत ने भी गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने को लेकर कई बार कोशिशें की गई, लेकिन विरोधियों के चलते वह फैसला नहीं ले पाए। लंबे समय से चले आ रहे कयासों के बीच मुख्यमंत्री रावत ने गैरसैंण(भराड़ीसैंण) को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर राज्य में ऐतिहासिक फैसला ले लिया है। इस फैसले से पहाड़ में विकास की आस बढ़ गई है। उम्मीद की जा रही कि गैरसैंण में अधिकारी यदि कुछ समय भी बैठे तो पहाड़ की समस्याओं से वाकिफ होंगे। उधर, कर्णप्रयाग के विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी, जोशीमठ के विधायक महेंद्र भट्ट समेत अन्य ने हाल ही में मुख्यमंत्री से मिलनकर भराड़ीसैंण में होने वाले बजट सत्र के दौरान गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने की मांग की थी। साथ ही 2017 के विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने भी गैरसैंण (भराड़ीसैंण) को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का संकल्प लिया था। मुख्यमंत्री की इस घोषणा से पार्टी को आगामी समय में इसका फायदा भी मिलेगा।
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दून में लंबे समय से चल रहा था धरना
गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। इसके लिए गैरसैंण राजधानी बनाओ संगठन पिछले कई माह से परेड ग्राउंड में धरना दे रहे हैं। इसके अलावा यूकेडी भी राजधानी के मुद्दे पर आंदोलनरत है। इधर, उत्तराखंड में राजधानी का मुद्दा जनभावनाओं से जुड़ा है। राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में पहाड़ की राजधानी पहाड़ में बनाए जाने को लेकर आवाज उठती रही हैं। राज्य आंदोलन के समय से ही गैरसैंण को जनाकांक्षाओं की राजधानी का प्रतीक माना गया है। यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा की सरकारें गैरसैंण को खारिज नहीं कर पाई।