भारत ने चीन बॉर्डर तक पहुंचायी सड़क, कैलाश मानसरोवर यात्रा और व्यास घाटी को अब ये मिलेगा फायदा

–रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली से ऑनलाइन किया सड़क का उदघाटन

-धारचूला के घटियाबगड़ से लिपूपास तक 75 किमी सड़क 17 साल में हुई तैयार

 

संतोष भट्ट,देहरादून।

लॉक डाउन और कोरोना महामारी के बीच देश के लिए एक अच्छी खबर आई है। उत्तराखंड से लगी चीन सीमा तक भारत ने एक और सड़क पहुंचा दी है। यह सड़क भारत ने पिथौरागढ़ ज़िले के घटियाबगड़ (गर्बाधार) से लिपूपास (लिपुलेेेख) तक बनाई है। शुक्रवार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली से इस सड़क का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से विदिवत उदघाटन कर सेना को समर्पित किया है। यह सड़क जहां चीन से लगी भारत की सीमा की रखवाली के काम आएगी, वहीं प्रसिद्ध मानसरोवर यात्रा और व्यास घाटी के कई गांव की उन्नति में महत्वपूर्ण साबित होगी।

भारत पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) जनपद से लगी चीन सीमा तक सड़क पहुंचाने में पिछले 17 साल से जुटा था। इसकी जिम्मेदारी बीआरओ  को 2003 से धारचूला के ने घटियाबगड़ से लिपूपास सड़क का निर्माण की दी थीं में जुटा था। करीब 75 किलोमीटर सड़क का निर्माण काफी चुनौती पूर्ण था। इसके चलते निर्माण 2006 से शुरु हो पाया था । इस दौरान बारिश, बर्फबारी और दूसरी तकनीक दिक्कतें आने से निर्माण में कुछ अड़चने आई। लेकिन गत दिवस ( गुरुवार 7 मई 2020) को सड़क निर्माण पूरा हो गया। आज( शुक्रवार) देेेश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली से इस सड़क का ऑनलाइन उद्घाटन कर दिया। रक्षामंत्री ने नई दिल्ली से वीडियो कान्फ्रेंसिंग कर बीआरओ केे अधिकारियों को इस उपलब्धि की बधाई दी। कहा कि कोरोना महामारी के बीच यह देश के लिए बड़ी उपलब्धि है। संंगठन को अन्य प्रोजेक्ट भी इसी तर्ज पर पूरा करने को कहा गया। उन्होंने ने कहा कि सड़क सीमा सुरक्षा में जुटी सेना और अर्धसैनिक बल के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। अभी तक सड़क न होने से सीमा चौकी तक पहुंचने में सेना को कई मिल पैदल चलना पड़ता था। इससे पेट्रोलिंग करने मेंं सेना को भारी मुुश्किलें उठानी पड़ती थी।इस दौरान पिथौरागढ़ में बीआरओ के अधिकारियों में नैनी सैनी हवाई पट्टी से कांफ्रेंसिंग के जरिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सड़क के बारे में जानकारी दी गई।इस मौके पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मनोज मुकुंद आदि अधिकारी मौजूद रहे।

इनको मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा

इस  सड़क के बनने से देश की ताकत न सिर्फ सामरिक दृष्टि से मजबूत होगी, बल्कि कैलास मानसरोवर के यात्रियों को भी बड़ी राहत मिलेगी।हर साल मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को काफी दूरी सड़क मार्ग से जाने की सुविधा मिलेगी।इसके अलावा तिब्बत-चीन सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले के सीमांत धारचूला की व्यास घाटी के गांव को भी फायदा मिलेगा।

 

2003 से हुई थी शुरुआत

बीआरओ इस महत्वपूर्ण सड़क के निर्माण में 2003 से जुट गया था। हालांकि रक्षा मंत्रालय ने भी समय पर सड़क बने, इसकी जिम्मेदारी बीआरओ को सौपी थी। 2006 में सड़क का विधिवत शुभारंभ हुआ।  इस सड़क को 2008 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण निर्माण कार्य निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो पाया। इसके बाद पहले 2012 फिर 2016 और 2018 तक निर्माण पूरा करने का लक्ष्य दिया गया था। किंतु रुकावट के चलते निर्माण में कुछ देरी हुई। सीमा सड़क संगठन (धारचूला) 67 आरसीसी के लेफ्टिनेंट कर्नल गुरुतेज सिंह का कहना हैै कि इस सड़क बनाने में खासी में मेहनत करनीपड़ी। बीआईरओ इस दिशा में दिनरात कार्य में जुटा रहा। अब लॉक डाउन के बीच बीआरओ ने इस सड़क का काम पूरा कर लिया है।

हेलीकॉप्टर से पहुंचाई मशीनें

चीन बॉर्डर को जोड़ने वाली इस सड़क को तैयार करने में बीआरओ को सबसे ज्यादा दिक्कत हार्ड रॉक के कारण हुई। इसके अलावा खड़ी चट्टानों को काटने में भी ज्यादा परेशानी हुई। यहां तकनीक सामग्री, मशीनरी और मजदूरों को समय पर पहुंचाने की चुनौती हर वक्त बनी रही। इस दौरान बीआरओ ने अधिकांश मशीन हेलीकॉप्टर से यहां पहुंचायी। नैनी सैनी हवाई पट्टी से सेना जहाज यहां सामन पहुंचाने में जुटा रहा।

व्यापार में भी मिलेगा फायदा

मानसरोवर और व्यास घाटी के लिए ही नहीं बल्कि भारत-चीन के बीच व्यापार करने में महत्वपूर्ण साबित होगी। इस सड़क बनने के बाद व्यास घाटी के आधा दर्जन गांव में पलायन रूकेगा और विकास रफ्तार पकड़ेगा। घाटी के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पूर्व यहां के लोग तिब्बत और चीन से पगडंडियों के सहारे व्यापार करते थे। सड़क बनने के बाद इनका लाभ मिल सकता है।

अब तीन दिन का सफर तीन घण्टे में 

इस सड़क निर्माण से सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान को काफी सुविधा होगी। पहले बॉर्डर तक पहुंचने में तीन दिन पैदल चल कर पहुंचते थे। लेकिन अब सड़क बनने से आईटीबीपी, एसएसबी और  बीआरओ को सिर्फ तीन घण्टे में पहुंच जाएंगे। बॉर्डर पर सेना और अर्धसैनिक राशन और दूसरी महत्वपूर्ण मशीनरी आसानी से ले जा सकेंगे।

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