उत्तराखंड में चक्रानुक्रम में ज्येष्ठता सूची पर बवाल, पीसीएस अफसरों ने दर्ज कराई आपत्ति
वैली समाचार, देहरादून।
उत्तराखंड राज्य सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) के अधिकारियों की अनन्तिम ज्येष्ठता सूची पर विवाद खड़ा हो गया है। सूची में 2009 से 2019 तक सीधी भर्ती और पदोन्नति से पीसीएस बने अफसरों में अंदरखाने नाराजगी चल रही है। सूत्रों का कहना है कि शासन की अनन्तिम सूची में सीधी भर्ती और पदोन्नति वालों को आपस में भिड़ाने का काम किया गया है। इस पर पीसीएस अफसरों ने बड़ी संख्या में कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग में आपत्तियां दर्ज कराई है। आपत्तियां कब तक निस्तारित होंगी और अंतिम सूची कब जारी होगी, इस पर कोई भी बोलने से बच रहा है।
उत्तराखंड में पीसीएस के पहले बैच का विवाद अभी पूरी तरह थमा भी नहीं कि दूसरे बैच की ज्येष्ठता सूची को लेकर बवाल खड़ा हो गया है। राज्य के कार्मिक और सतर्कता अनुभाग ने 5 अप्रैल को मौलिक नियुक्ति के आधार पर 2009 से 2019 तक सीधी और पदोन्नति से भर्ती हुए 224 पीसीएस अफसरों की अनन्तिम ज्येष्ठता सूची जारी की। इस सूची में दोनों वर्ग के अफसरों ने सवाल खड़े किए हैं। सीधी भर्ती के अफसरों का कहना है कि उनकी नियुक्ति प्रक्रिया के लिए विज्ञप्ति 2004 में जारी हुई। प्रारंभिक परीक्षा 2005 में हुई। 2007 में मुख्य परीक्षा का आयोजन किया गया। 2008 में इंटरव्यू तो 2009 में मेडिकल के बाद नियुक्ति मिली थी। ऐसे में शासन के स्तर पर भर्ती प्रक्रिया में देरी हुई है। ऐसे में अफसरों ने ज्येष्ठता सूची में उनको 2009-10 के चक्रानुक्रम में रखने पर गंभीर आपत्तियां दर्ज की हैं। अफसरों ने मांग की कि उनके नाम को पदोन्नति से पहले रखा जाए। इसके अलावा सूची में मृतक, सेवानिवृत्त, कैडर छोड़ने वाले के नाम दर्ज हैं। लेकिन पीसीएस अफसर आरडी पालीवाल को शामिल नहीं किया गया है। इस पर भी अफसरों ने आपत्ति दर्ज कराते हुए पालीवाल का नाम सूची में शामिल करने की मांग की। अफसरों ने सचिव कार्मिक को भेजी गई आपत्तियों में कहा कि अनन्तिम ज्येष्ठता सूची पूरी तरह से नियमावली के विपरीत है। इसमें सुधार कर अंतिम सही सूची जारी की जाए। इस सम्बंध में सचिव कार्मिक से उनका पक्ष जानने की कोशिशें की गई, लेकिन संम्पर्क नहीं हो पाया। जब भी उनका पक्ष मिलेगा, प्रमुखता से प्रकाशित किया जाएगा।
2015 के प्रमोशन में जो नियम अपनाए वह आगे क्यों नहीं
पीसीएस अफसरों ने कहा कि शासन ने सीधी भर्ती और पदोन्नति वालों को 2015 में जैसा प्रमोशन दिया था। उस पर किसी को भी आपत्ति नहीं थी। अब नई प्रक्रिया अपना कर अफसरों को आपस में भिड़ाने का काम किया जा रहा है। जैसा 2015 में प्रमोशन दिया गया, उसी नियम के तहत अब ज्येष्ठता सूची भी जारी की जानी चाहिए।
अफसरों का मनोबल टूटेगा
उत्तराखंड में 2009 से 2019 तक कई ऐसे काबिल अफसर हैं, जो लीक से हटकर राज्य के विकास में योगदान दे रहे हैं। ऐसे में ज्येष्ठता सूची में गड़बड़ी हुई तो निश्चित ही अफसरों का मनोबल कम होगा। अफसरों में निराशा, हताशा और भेदभाव पूर्ण रवैया से राज्य के विकास को नुकसान होगा।