“गरतांग गली” में उद्घाटन से पहले उमड़ रहे पर्यटक, यहां देखिए साहसिक पर्यटन का रोमांच

वैली समाचार, उत्तरकाशी। 

भारत-चीन आक्रमण यानी 1962 से पहले उत्तरकाशी और तिब्बत के बीच व्यापार मार्ग के सेतु “गरतांग गली” (गढ़तांग गली) फिर पर्यटकों के दीदार को तैयार हो गई है। अभी कोविड के चलते यात्रा बंद होने और विधिवत उद्घाटन न होने पर भी इस अनूठी “गरतांग गली” को देखने स्थानीय लोग उमड़ रहे हैं। यात्रा खुलने पर निश्चित ही इस अनूठे पर्यटक स्थल को देखने पर्यटकों की भीड़ उमड़ेगी। कठोर चट्टानों को काटकर हवा में लकड़ी से बनाया गया इस तरह का रास्ता शायद ही दुनिया में देखने को मिलेगा।

अंतरराष्ट्रीय भारत चीन बॉर्डर पर उत्तरकाशी के नेलांगघाटी से लगे गंगोत्री हाईवे के लंका पुल के पास गरतांगगली है। जानकारों का कहना है कि 1962 से पहले लगभग 11 हजार फीट की ऊंचाई पर 17वीं शताब्दी में भारत तिब्बत व्यापार के लिए यह रास्ता बनाया था। इसका निर्माण टकनौर क्षेत्र के किसी सेठ ने पेशावर के पठानों की मदद से कराया था। उस दौरान तिब्बत से भारत में वास्तुविनियम से बड़ा व्यापार होता था। उत्तरकाशी के बााड़ाहाट में तिब्बत से आयातित सामान का बाजार यानी बड़ी हाट लगती थी। उस दौरान सड़क मार्ग न होने से तिब्बत जाने के लिए यह एक मात्र सुरक्षित रास्ता था। लेकिन 1962 में भारत-चीन आक्रमण के बाद तिब्बत से व्यापार बंद हो गया। इसके बाद उत्तरकाशी से लगी चीन सीमा पर सेना और आईटीबीपी तैनात हुई। व्यापार बंद होने के बाद सेना ने बॉर्डर तक जाने के लिए इस रास्ते का कई सालों तक उपयोग किया। लेकिन इस बीच लंका पुल बन जाने पर करीब 1975 के दौरान सेना और आईटीबीपी ने यह रास्ता छोड़ दिया। तब से यह रास्ता जीर्ण शीर्ण हाल में चला गया था। अब सेना चीन बॉर्डर के करीब 20 किमी पहले तक सड़क मार्ग से आवाजाही करती है। ऐसे में इस पैदल रास्ते की कोई जरूरत नहीं पड़ी। 2017 में इस रास्ते पर स्थानीय पर्यटन व्यवसायिओं की नज़र पड़ी। बुजुर्गों से जानकारी ली तो पता चला कि यह रास्ता भारत के लिए साहसिक और हेरिटेज पर्यटन के रूप में मील का पत्थर साबित हो सकता है। तब से लगातार इसके जीर्णोद्धार की आवाज उठाने लगी। लेकिन बॉर्डर, वन विभाग, गंगोत्री नेशनल पार्क, पर्यटन और लोक निर्माण विभाग के बीच मामला फंसने से काम शुरू नहीं हो पाया। करीब दो साल तक फाइलें एक विभाग से दूसरे विभाग तक धक्का खाती रही। लेकिन 2019-20 में जनप्रतिनिधियों और काबिल अफसरों के समन्यव से इस योजना पर काम शुरू हो पाया। इस बीच कोविड ने भी काम प्रभावित किया, लेकिन इस साल” गरतांगगली हेरिटेज” आखिर तैयार हो गई है। अब यह स्थान साहसिक और रोमांचित करने वाला स्थान तैयार होने से गंगोत्री घाटी आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहेगा।

 

विश्वभर में नहीं ऐसा स्थान

तिब्बत से बह रही जाड़ गंगा से लगे पहाड़ी चट्टान को काटकर करीब 150 मीटर लंबा गरतांगगली का रास्ता लकड़ी के सीढ़ीनुमा है। देवदार की लकड़ी के साथ ही चट्टानों में इस बार लोहे की एंगल भी सुरक्षा की दृष्टि से लगाई गई है। ताकि पर्यटकों की आवाजाही से किसी तरह का खतरा उतपन्न न हो पाए।जानकारों का कहना है कि विश्वभर में इस तरह और तकनीकी से बना कोई रास्ता नहीं है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब इसे विश्व की हेरिटेज के रूप में देखा जाएगा।

 

बॉर्डर के इन गांव तक जाता था रास्ता

चीन युद्ध से पहले जाड़ भोटिया समुदाय के लोग तिब्बत से लगे भारत के नेलांग और जाडुंग गांव में रहते थे। 1962 केे बाद सुुरक्षा की दृष्टि से इन गांव को हर्सिल के बगोरी और छोलमी में शिफ्ट किया गया। इन दोनों गांव में आज भी बने घरों में सेना और आईटीबीपी रहती है। इसके अलावा गरतांगगली का रास्ता चीन बॉर्डर के सुमला, मंडी, नीलापानी, तिरपानी, पीडीए आदि स्थानों तक रास्ता जाता था।

 

 

 

 

होटल एशोसिएशन ने किया गढ़तांग गली का दीदार

 

 

होटल एसोसिएशन चला “गढ़तांग गली” ,,, विश्व प्रसिद्ध नेलांग घाटी के गढ़तांग गली को देखने के लिये होटल एसोसिएशन का एक दल पहुँचा।। भैरव घाटी लंका पुल से पहले 1 km का ट्रैक का सफर बहुत ही रोमांचित, साहसिक, नैसर्गिक सौंदर्य से पूर्ण, देवदार के जंगल से गुजरते हुए जब 200 साल पुराने गढ़तांग गली को देखने पहुचे तो सभी दंग, आश्चर्यचकित रह गए। किस तरह से इस लकड़ी के पुल को चट्टानों पर लोहे के गार्डर, रॉड पर देवदार के स्लीपर, तख़्तों को बिछाकर 130 मीटर लंबे पुल को बनाया गया, ये अद्धभुत है।। होटल एसोसिएशन द्वारा 2017 से लगातार इसमे शाशन, प्रशासन से मांग करते रहे कि इस ऐतिहासिक धरोहर का पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार किया जाना चाहिये।। गंगोत्री विधायक स्व० श्री गोपाल रावत जी द्वारा इसमे सहयोग किया जाता रहा। उन्होंने हमारी मांग को लगातार अंतिम समय तक बजट जारी होने तक कि लड़ाई लड़ी लेकिन जब आज ये गढ़तांग गली का जीर्णोद्धार पूर्ण हुआ और पर्यटकों के लिये खुल गया है, वे हमारे बीच नही है। उनके योगदान को हम हमेशा याद रखेंगे।। पूर्व जिलाधिकारी डॉ आशीष चौहान व वर्तमान जिलाधिकारी डॉ मयूर दीक्षित जी का भी आभार जिनके कार्यकाल में इस ऐतिहासिक गढ़तांग गली के जीर्णोद्धार को सरकारी मशीनरी से सम्पन करवाया।। आने वाले समय मे ये ऐतिहासिक गढ़तांग गली पर्यटकों के लिये रोमांच का सफर, लाखों adventure के शौकीनों के लिये नया पर्यटन स्थल बनेगा।। देश विदेश के पर्यटकों के लिये और भी ज्यादा सुविधाओं को विकसित किया जाएगा, शौचालय, पीने का पानी की व्यवस्था, ट्रेक मार्ग पर बैठने के लिये बेंच, छतरी निर्माण किये जायेंगे, ऐसा हमे पूर्ण विश्वास है।। इस अवसर पर शैलेन्द्र मटूडा, बिन्देश कुड़ियाल, सुरेश राणा, अमित बलूनी, सुभाष कुमाएँ, रविन्द्र नेगी, विमल सेमवाल, मनोज रावत, प्रकाश भद्री, आशिष कुड़ियाल, धनपाल पंवार, धीरज सेमवाल, राजेश जोशी, माधव जोशी साथ रहे।।

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