उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड को लेकर जारी तीर्थपुरोहितों का धरना, उग्र आंदोलन की चेतावनी
वैली समाचार, देहरादून।
देवस्थान बोर्ड के विरोध में चारों धाम में तीर्थ पुरोहितों का धरना और प्रदर्शन जारी है। तीर्थपुरोहितों ने कहा कि जब तक देवस्थानम बोर्ड को भंग नहीं किया जाता उनका आंदोलन जारी रहेगा। कहा कि अभी तीर्थपुरोहित सिर्फ शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। यदि जल्द सरकार सकारात्मक निर्णय नहीं लेती तो 21 जून के बाद उग्र आंदोलन शुरू किया जाएगा।
उत्तराखंड में चारों धाम को देवस्थानम बोर्ड में शामिल करने का विवाद बढ़ता जा रहा है। इसे लेकर तीर्थपुरोहित और सरकार पिछले साल से आमने सामने है। इस साल भी यात्रा सीजन शुरू होते ही तीर्थ पुरोहित मंदिर परिसर में धरना दे रहे हैं। तीर्थ पुरोहितों ने कहा कि पिछले साल प्रदेश सरकार ने बिना बातचीत व सुझाव के बोर्ड गठित किया था जिसका वे पुरजोर विरोध करते हैं। पुरोहितों ने कहा कि अभी तो सांकेतिक आंदोलन कर रहे हैं। जल्द मांग पर सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई, तो 21 जून से अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जाएगा। इधर, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल में बोर्ड का गठन हुआ था। अब राज्य में तीरथ रावत नए सीएम हैं। नए सीएम ने देवस्थानम बोर्ड को रद करने को लेकर जल्द निर्णय लेने का भरोसा तीर्थपुरोहितों को दिया था। इससे कुछ दिन तीर्थपुरोहित शांत हो गए थे। लेकिन मुख्यमंत्री के आश्वासन के बीच सरकार ने देवस्थानम बोर्ड में कुछ उद्योगपति और कुछ स्थानीय लोगों को सदस्य बना दिया। इससे तीर्थपुरोहितों का गुस्सा बढ़ गया है। यही कारण है कि तब से गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में तीर्थपुरोहितों का धरना प्रदर्शन जारी है। आज शनिवार को भी भारी बारिश के बावजूद तीर्थपुरोहितों ने अपना धरना जारी रखा।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने दिया समर्थन
वनाधिकार आन्दोलन के प्रणेता और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उत्तराखंड के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर तुरन्त देवस्थानम् बोर्ड को भंग करने और इस सम्बन्ध में बनाये गये नियम-क़ानूनों को वापिस लेने हेतु कहा है। उपाध्याय ने कहा कि तीर्थ पुरोहितों को विश्वास में लिये बिना यह काला क़ानून उन पर थोप दिया गया और उनके पुश्तैनी हक़-हकूकों और अधिकारों का क़त्ल कर दिया गया है। उपाध्याय ने कहा कि उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की सरकारें एक जाति विशेष व समुदाय के प्रति वैमनस्य का भाव रख रही हैं और सामाजिक समरसता के ताने-बाने को नष्ट कर देना चाहती हैं। उपाध्याय ने मुख्यमंत्री से कहा कि उन्होंने स्वयं इस काले क़ानून की समाप्ति की घोषणा की थी और अब वे इससे मुकर रहे हैं । उपाध्याय ने सरकार पर राज्य के तीर्थ और धामों को पूँजीपतियों का “चेरी”बनाने का आरोप लगाया और कहा कि थोड़े से पैसे के लालच में स्थानीयता और उत्तराखंडियत की उपेक्षा कर बाहरी व्यक्तियों को धार्मिक संस्थाओं में नामित किया जा रहा है।सरकार इन नियुक्तियों को तुरन्त वापिस ले। उपाध्याय ने मुख्यमंत्री से कहा है कि उन्होंने देश के तीर्थ पुरोहित समाज से भी इस बारे में वार्ता कर अनुरोध किया है और कहा है कि यदि सरकार ने अपना यह निर्णय वापस नहीं लेती तो वे उत्तराखंड के तीर्थ पुरोहित समाज के साथ खड़े होकर भाजपा के इस सनातन धर्म विरोधी कृत्य का विरोध करें।