डीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार ने किया समाजसेवी त्रेपन सिंह की दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता को सलाम

-जनचेतना आंदोलन से समाजसेवा में जुटे त्रेपन सिंह चौहान का लम्बी बीमारी के बाद निधन

-बीमार पड़ने के बाद आँखों की पुतलियों से लिख लेते थे लैपटॉप पर

– पहले “यमुना” लिखा और फिर “हे ब्वारी”, अब 
गत 2 वर्ष से तीसरा उपन्यास “ललावेद” लिख रहे थे

वैली समाचार, देहरादून।

उत्तराखंड में जन चेतना आंदोलन के मुखिया रहे समाजसेवी त्रेपन सिंह चौहान के निधन से हर कोई दुखी है। गंभीर बीमारी से जूझने के बावजूद उनके अंदर समाज सेवा का जुनून काबिलेतारीफ था। उनका निधन समाज के लिए बड़ा नुकसान है। ऐसे समाज सेवी समाज को दुबारा मिलेगा, यह कल्पनीय है। समाज सेवी त्रेपन सिंह से जो एक बार मिला या फिर उनके विचारों से रूबरू हुआ, वह कायल हो गया। कोरोना संक्रमण काल के बीच इनके निधन की खबर जिसको भी मिल रही है, वह सोशल मीडिया या दूसरे मंच पर उनके बारे में कुछ न कुछ लिख कर अपनी श्रद्धांजलि दे रहा है। कुछ ऐसा ही राज्य केे पुलिस महानिदेशक लॉ एंड आर्डर अशोक कुमार ने अपनी फेसबुक वॉल पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी, मदन मोहन बिजल्वाण समेत अन्य ने श्रद्धांजलि अर्पित की है।

डीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार ने त्रेपन चौहान को इस तरह दी श्रद्धांजलि……

श्रीर त्रेपन चौहान जी को लगभग 5 वर्ष से जानता था । साहित्य से जुड़े होने के नाते उनके उपन्यास यमुना की काफी प्रसिद्धि से भी अवगत था । वे करीब पांच साल पहले मुझसे मिले जब मैं ADG इंटेलिजेंस था । वे निर्माण मजदूरों के लिए बहुत कार्य कर रहे थे । उस बारे में यथासंभव मैंने भी उनका साथ देने की कोशिश की । फिर लगभग दो साल तक कोई मुलाकात नही हुई और अचानक एक दिन उनके मित्र शंकर, जो उनके साथ ही मुझसे मिलते थे, के माध्यम से पता चला कि उन्हें मोटर न्यूरॉन की गम्भीर बीमारी है । मैं जब उनसे मिलने उनके घर गया तो तीन बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया –

पहली कि वो आँखों की पुतलियों से लिख लेते थे लैपटॉप पर । चल फिर नहीं सकते थे, बोलने की कोशिश करते थे पर बहुत मुश्किल से थोड़ा बहुत बोल पाते थे जिसे सिर्फ उनकी पत्नी बहुत प्रयास के बाद समझ पाती थी । पर कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के सहारे सिर्फ आँख की पुतली के मूवमेंट से टाइप कर ले रहे थे , ये उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ही थी जो उन्होंने अंत तक लेखन जारी रखा ।
दूसरे उनकी धर्म पत्नी निर्मला जी जो आखिरी वक्त तक उनकी सेवा में लगी रही और जिनको मैंने कठोरतम क्षणों में भी कभी कमजोर नहीं देखा। उनमें जो दृढ़ता थी और जो कर्मभाव था, जो सेवाभाव था वो विरले ही देखने को मिलता है ।
तीसरे उनके मित्र शंकर जो मूलतः दक्षिण भारत से हैं और अपनी असहायों के प्रति प्रतिबद्धता के कारण आख़िरी दम तक त्रेपन जी के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराने में लगे रहे । कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर ‘Eye Tracker’ भी उन्होंने ही उपलब्ध कराया था । वे चौहान जी की शुरू की गई घसियारी प्रतियोगिता को भी चालू रखने में प्रयासरत हैं ।

लम्बे गैप के बाद उनसे इस हाल में हुई मुलाकात के बाद ये सिलसिला जारी रहा । मैंने अपनी जीवन संगिनी अलकनन्दा को भी उनसे मिलवाया , वो भी बहुत प्रभावित हुई ।
चौहान साहब को मेरी क़िताब खाकी में इंसान बहुत अच्छी लगती थी। ये एक नॉनफिक्शन है जो यथार्थ की घटनाओं पर लिखी गयी है । उनकी बड़ी इच्छा थी कि मैं पुलिस पर कोई राग दरबारी जैसी कालजयी कृति उपन्यास रूप में लिखूँ । कुछ काम हुआ भी । चौहान साहब ने भी ideas दिए । फिर कोरोना में व्यस्त होने की वजह से गति नहीं पकड़ पाया । इस बीच चौहान साहब हॉस्पिटल में दाखिल हुए । वहाँ भी दो बार मुलाकात हुई । यद्यपि दूसरी बार रिकवर्ड लगे मुझे । कुछ लैपटॉप के माध्यम से एक दो sentence लिखकर बात भी हुई । पर तीन चार दिन बाद ही दुःखद सत्य की खबर आ गई । उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, और प्रतिबद्धता को सलाम ।
कोशिश करूंगा कि कभी न कभी उनकी मुझसे जो अपेक्षा थी वो पूरी कर सकूँ । ऐसी पुण्यात्मा को मेरी दिल से श्रधांजलि …

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वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी ने इस तरह दी श्रद्धांजलि…

ध्यान से देखें इस फोटोग्राफ को …………………………..
मौत को भी इंतजार करना पडा इस आदमी का ………….
इस फोटो में कंप्यूटर के सामने बैठे हैं, कल ही दिवंगत हुए हमारे साथी त्रेपनसिंह चौहान।
पिछले 8 – 10 वर्षों में गंभीर बीमारियों से जूझते रहे। पहले कैंसर और फिर लाइलाज बीमारी “मोटर न्यूरॉन से।
बीमारियों के दौर में भी उन्होंने “श्रम का सम्मान” और “घसियारी” जैसे बड़े आयोजन कर डाले। इस दौरान भी उनके मुस्कराते हुए फोटो सोशल मीडिया में देखे जाते रहे हैं।
उत्तराखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि पर उन्होंने पहले “यमुना” उपन्यास लिखा और फिर “हे ब्वारी”।
गत 2 वर्ष से तीसरा उपन्यास “ललावेद” लिख रहे थे कि इसी दौरान बीमारी गंभीर होती चली। ‘मोटर न्यूरॉन” में मस्तिष्क का नियंत्रण मांसपेशियों पर से कटता जाता है। भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग को वर्षों पहले यह बीमारी हुई थी। उनके ऐसे ही फोटोग्राफ आपने देखे होंगे।
शुरू में त्रेपन भाई स्वयं कंप्यूटर पर बैठकर टाइप करते रहे। फिर जब हाथों ने काम करना बंद किया तब बोल कर अन्य साथियों से टाइप करवाया। लेकिन फिर जबान भी जवाब दे गई। गर्दन से नीचे हाथ – पैर, कमर सब निष्क्रिय।
वह लिखना जारी रखना चाहते थे। उन्हें बीमारी की गंभीरता का अंदाजा था। तब उनके साथी शंकर गोपाल एक ऐसा सॉफ्टवेयर लेकर आए जिसके द्वारा आंखों की पुतलियों के इशारे से कंप्यूटर पर अपना उपन्यास लिखना जारी रख सकते थे। स्टीफन हॉकिंग वर्षों तक भौतिक विज्ञान के शोध ऐसे ही लिखते रहे।
त्रेपन भाई ने इस अवस्था में भी करीब 1 साल तक लेखन जारी रखा। उन्हें कम्प्य़ूटर के सामने बिठा दिया जाता। संभव है अब “ललावेद” उपन्यास पूरा लिखा जा चुका होगा। मौत को भी इसका इंतजार करना पड़ा होगा।
त्रेपन भाई कल हमारे बीच से विदा हो गए। लेकिन अंतिम समय तक भी उनकी यह जीवटता हम सब के लिए प्रेरक है कि किस तरह गंभीर और असाध्य बीमारी से ग्रस्त होने पर भी जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय और सार्थक जीवन जिया जा सकता है।
सच में त्रेपन भाई, पहाड़ के साहित्य जगत के स्टीफन हॉकिंग बन कर ही बिदा हुए हैं। ये फोटोग्राफ बहुतों को प्रेरित करता रहेगा। जीवटता का दस्तावेज ……………….।

 

वरिष्ठ पत्रकार मदनमोहन बिजल्वाण ने भी दी श्रद्धांजलि….

हे ब्वारी जैसे अमर गाथा के रचनाकार, उपन्यासकार, सोशल एक्टीविस्ट , एवं पहाड़ की आत्मा को अपने साहित्य की कथावस्तु बनाने वाले जीवट मित्र त्रेपन सिंह चौहान के निधन के समाचार से मैं नि:शब्द व स्तब्ध हूँ. वे लंबे समय से जीवन- मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे, और अंत में यह जीवट जिजीविषा का व्यक्ति मृत्यु से हार गया. त्रेपन भाई के निधन से उत्तराखण्ड के सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों को अपूर्णीय क्षति हुई है.
मैं इस जीवट मित्र को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. ईश्वर उनकी पुण्यात्मा को शांति प्रदान करे एवं शोक संतप्त परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे.

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