स्कूलों की फीस वसूली पर डीएम सख्त, फीस जमा कराने को मैसेज और लेटर भेजे तो होगी कार्रवाई
-देहरादून के नामी स्कूलों से लेकर गली-मोहल्ले में मानकों के विपरीत चल रहे स्कूल कर रहे मनमानी
-मासिक फीस के साथ वसूल रहे एनुअल चार्ज, किताब बेचने में कर रहे मनमानी
-डीएम आशीष श्रीवास्तव ने उल्लंघन पर सीईओ को दिए कार्रवाई के निर्देश
देहरादून। लॉक डाउन में बंद चल रहे स्कूल संचालक अभिभावकों पर फीस जमा करने का दबाव बना रहे हैं। इसे लेकर हर दिन मोबाइल पर मैसेज भेजने के साथ व्हाट्सएप ग्रुप में लैटरबाजी चल रही है। सरकार के आदेश के बावजूद स्कूलों की इस करतूत पर देहरादून के डीएम ने कड़ी नाराजगी जाहिर की। कहा कि स्कूल संचालक बेवजह अभिभावकों को फीस जमा करने को दबाव न डालें। दोबारा ऐसी शिकायतें मिली तो सीधे कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए मुख्य शिक्षा अधिकारी को कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।
कोरोना महामारी के चलते देशभर में लॉक डाउन चल रहा है। इससे लोगों के रोजी रोटी पर असर पड़ा है। एक माह से स्कूल भी बंद हैं। अभी स्कूल कब तक खुलेंगे यह स्थिति स्पष्ट नहीं है। ऐसे में प्रधानमंत्री से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री स्कूल संचालकों को फीस वसूलने में राहत देने का अनुरोध कर चुके हैं। उत्तराखण्ड में तो शिक्षा सचिव को दो बार आदेश जारी करने पड़े। बावजूद इसके प्राईवेट स्कूल संचालक मनमानी पर उतर रखें हैं। स्कूल संचालक हर दिन अभिभावकों को फोन पर मैसेज करने के साथ ही स्कूलों के व्हाट्सएप ग्रुप पर लैटर जारी कर फीस जमा कराने को दबाव बना रहे हैं। इसे लेकर हर दिन अभिभावकों द्वारा डीएम से लेकर शासन तक शिकायत की जा रही है। मंगलवार को देहरादून के डीएम आशीष श्रीवास्तव ने स्कूलों की इस मनमानी को गलत बताते हुए सख्त हिदायत दी कि स्कूल संचालक दबाव डालकर फीस न वसूलें। जो अभिभावक फीस देना चाहते हैं, वो दे सकते हैं। मैसेज और पत्र जारी करने वाले स्कूल संभल जाएं, अन्यथा सीधा आपदा एक्ट में मुकदमा दर्ज किया जाएगा। डीएम ने सीइओ को निर्देश दिए कि वह मनमानी करने वाले स्कूलों पर सीधी कार्रवाई करें।
स्कूलों में ही खोल रखी दुकानें
देहरादून में ऐसे प्राईवेट स्कूलों की सूची बहुत लंबी है, जो मनमानी करते रहते हैं। इन स्कूलों में छात्र-छात्राओं से एडमिशन से लेकर मासिक फीस में भी मनमानी की जाती है। जबकि किताबों से लेकर ड्रेस तक की दुकानें भी संचालित की जाती है। अभी स्कूल खुले नहीं , लेकिन किताब और ड्रेस खरीदने का भी दबाव बना रहे हैं।
पुरानी किताबों पर पाबंदी
दून के 99 फीसद स्कूल ऐसे हैं, जिन्होंने शिक्षा को धंधा बना रखा है। यदि एक घर में कोई बच्चा आगे पीछे की कक्षा में हैं तो वह पुरानी किताबें पढ़ने का अधिकार नहीं रखते। इसके पीछे स्कूल संचालक कमाई देखते हैं।ऐसे में गरीब और जरूरतमंद बच्चों को यदि कोई पुरानी किताबें देना चाहे तो इसकी भी अनुमति नहीं है।