खतरा:प्रवासियों की भीड़ में कहीं पहाड़ न चढ़ जाए कोरोना वायरस

अलर्ट

– बड़ी संख्या में देश और दुनिया के महानगरों से पहाड़ को लौट रहे प्रवासी लोग, दिल्ली से ऋषिकेश तक जुटी लोगों की भीड़

-होटल, फैक्टरी और प्राइवेट संस्थान बंद होने के बाद घर लौट रहे प्रवासी

-पहाड़ों में कोरोना की जांच और निगरानी की नहीं पुख्ता व्यवस्था

 

संतोष भट्ट, देहरादून।

देश और दुनिया से उत्तराखंड लौट रहे अप्रवासियों ने पहाड़ की मुश्किलें बढ़ा दी है। मुंबई से लेकर उत्तराखंड तक लॉक डाउन की घोषणा के बाद घरों को लौट रहे इन लोगों से पहाड़ में भी कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। बिना जांच पड़ताल और सुरक्षा की अनदेखी के साथ घर लौट रहे लोगों के प्रति समय रहते सतर्कता न बरती तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।ऐसे में जरूरी है कि पहाड़ हो या मैदान दूसरे राज्य और ज़िले से आने जाने वाले का पूरा हिसाब रखा जाए।  इधर,  घर लौट रहे प्रवासियों का कहना है कि लॉक डाउन के दौरान बिना काम के किराए के कमरों में रहना उनकी जेब पर भारी पड़ रहा है। ऐसे में अपने घर लौटने के सिवाय उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

देशभर में कोरोना वायरस से बचाव के लिए सरकार ने कई बड़े शहरों को लॉकडाउन कर दिया है। इससे इन शहरों में पहाड़ से रोजगार करने गए हजारों लोगों के सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है। महामारी न फैले इसके लिए शहरों को लॉकडाउन किया गया था। लेकिन बिना काम के इन शहरों में रहना मजदूर और मामूली तनख्वाह लेने वालों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है। ऐसे में अलग अलग देश, राज्य और शहरों में रहने वाले उत्तराखंड समेत दूसरे राज्यों के प्रवासी वापस अपने घरों को लौट रहे हैं। रविवार शाम और सोमवार दिनभर मुंबई, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून आदि शहरों के बस अड्डों में जो भीड़ जुटी वह कोरोना संक्रमण के लिहाज से बेहद चिंताजनक थी। इस भीड़ में कौन वायरस संक्रमण कर रहा, इसका पता लगाना मुश्किल होगा। यही कारण है कि कोरोना संक्रमित देश और महानगरों से ये लोग सीधे पहाड़ों की शांत वादियों तक पहुंच जाएंगे। जहां वायरस वाहक न केवल स्वयं बल्कि दूसरों को भी संक्रमित कर सकता है। हालांकि मुसीबत में घर लौट रहे इन अप्रवासियों की मदद भी घर पहुंचाने तक स्थानीय प्रशासन कर रहा है। किंतु डर इस बात का भी बना हुआ कि कहीं ये लोग सुरक्षित इलाकों में संक्रमण न फैला दें। इससे स्थानीय प्रशासन भी काफी हद तक डरा हुआ है।

घर मे इसका जरूर रखें ख्याल

कोरोना संक्रमण के बीच यदि कोई बाहर से घर गांव पहुंच रहा तो वह स्वयं को 14 दिन की निगरानी में रखें। चारधाम अस्पताल के एमडी डॉ केपी जोशी का कहना है कि भीड़ में कौन वायरस से संक्रमित है, इसकी पहचान करना मुश्किल है। ऐसे में स्वयं को परिवार से अलग रखें। कोरोना से बचाव में जो परहेज़ करनी है, उसका पालन करें। बारबार हाथ धोने, सेनेटाइजर का उपयोग करें। यदि खांसी, जुकाम, सिरदर्द या बीमारी के कोई लक्षण दिख रहे तो नजदीकी अस्पताल में दिखाएं। साथ ही कोरोना आए सम्बन्धित जांच भी जरूर कर लें।

लॉक डाउन के बाद निकले

जनता कर्फ्यू खत्म होने बाद कई राज्यों में लॉक डाउन की घोषणा हुई। इसके बाद तो अप्रवासियों में घर पहुंचने की होड़ मच गई। हर कोई रात को ही सुरक्षित घर पहुंचना चाहता था। इसी चक्कर में देखते ही देखते बस अड्डों पर भीड़ जुट गई।भीड़ बढ़ी तो गन्तव्य तक पहुंचने की चिंता बढ़ गई। हालांकि देर रात तक वाहन न मिलने पर लोगों ने रात बस अड्डे पर ही बिताई।सुुुबह जिसको जहां तक वाहन मिले, वह उसमें सवार होकर चल दिये।

 

जांच के बाद गांव आने की अनुमति

उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी और कुमाऊं के कई गांव के प्रधानों ने बाकायदा गांव में सर्कुलर जारी कर दिया है। इसमें स्पष्ट लिखा गया कि जो कोई भी गांव आये वह मेडिकल जांच जरूर कराए। इसका प्रमाण भी दिखाएं। इसके बाद ही गांव आने की अनुमति दी जाएगी। इसी तरह सोशल मीडियाके एक महिला का कंडाली के साथ फोटो भी वायरल हुआ है। यह महिला साफ कह रही कि महानगरों में रहने वाले कतई पहाड़ के गांव न आये। बाहर के लोगों पर गांव में संक्रमण फैलने का भी आरोप लगाया जा रहा है। यह वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है।

 ऐसे हो सकती अप्रवासियों की मदद

लॉक डाउन के बाद राज्य सरकार या केंद्र सभी राज्यों में रहने वाले अप्रवासियों को महामारी पर काबू पाने तक रहने और खाने में मदद दें। इसके लिए सम्बंधित होटल, फैक्टरी या अन्य संचालकों को भी सख्त हिदायत दें कि उनके अधीन काम करने वालों की रहने, खाने और खर्चे की पूरी व्यवस्था करें। जरूरत पड़ने पर ही पुख्ता मेडिकल जांच पड़ताल के बाद ऐसे लोगों को घर पहुंचाने में मदद की जाए।

ये है लौटने की असली वजह

केंद्र सरकार के जनता कर्फ्यू के बाद राज्य सरकारों ने लॉक डाउन की घोषणा कर दी। इनसे होटल, ढाबे, दुकानों और फैक्टरियों में काम करने वाले हजारों की संख्या में युवा खाली हाथ बैठ गए। काम न होने से कई मालिकों ने दाम देने से इनकार कर दिया। ऐसे में मामूली तनख्वाह में किराया, खाने-पीने का खर्चा और घर की जिम्मेदारी इन नोकरी-पेशा वालों की चिंता बन गई थी। इस वजह से अधिकांश में अपने घर लौटना ही उचित समझा।

 

दिल्ली और ऋषिकेश में लगा जमवाड़ा

लॉक डाउन की घोषणा होते ही दिल्ली और ऋषिकेश बस अड्डे पर हजारों की संख्या में युवाओं की भीड़ जुट गई। रातभर बस अड्डे में बिताने पर इन युवाओं ने अपने अपने क्षेत्र के विधायक, पूर्व विधायक और अधिकारियों से संपर्क साधा। कईयों ने सीएम से लेकर पीएम तक ट्वीट कर अपनी व्यथा बताई। इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने इन युवाओं के लिए वाहनों की व्यवस्था की गई। इस दौरान कई विधायक भी सोशल मीडिया पर मदद करने को आगे आ गए। इन विधायकों ने सरकार को लिखे पत्र भी सोशल मीडिया में वायरल कर सबसे पहले मदद करने के दावे किए गए। इनमें भाजपा के अलावा कांग्रेस के विधायक भी शामिल हैं। जबकि कुछ स्थानीय नेता भी जगह जगह फंसे लोगों की मदद करने की बात कह रहे हैं।

 

स्कूल बंद होने से लौट रहे घर

उत्तराखंड के बड़ी संख्या में युवा दिल्ली, देहरादून में शिक्षा ग्रहण करते हैं। स्कूलों को बंद कर देने के बाद युवा अपने घर लौट रहव हैं। कोरोना वायरस की दहशत में उत्तराखंड में अपने आप को सुरक्षित रखते हुए कई युवा उपने घरों को वापस लौट रहे हैं। हॉस्टल, किराए के कमरों से ज्यादा यह युवा अपने घर को सुरक्षित मान रहे हैं। लेकिन भीड़ में घर जाने तक वह कहां संक्रमित हो जाएंगे, इसका पता भी नहीं चलेगा।

 

राज्य में लॉक डाउन के बाद सभी सीमाएं सील की गई है। निजी वाहनों या फिर राजस्व क्षेत्र से लगे गांव कस्बों के रास्ते लोग आवाजाही कर रहे हैं। लोगों को उनकी सुरक्षा को देखते हुए घरों में रहने को कहा गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से भी जानकारी दी जा रही है। बिना वजह घर से निकलने वालों के खिलाफ कार्रवाई के कड़े निर्देश दिए गए हैं। दूसरे राज्यों आए लौट रहे लोगों की जांच पड़ताल करने बाद ही वाजिब कारणों पर आगे जाने दिया का रहा है।

अशोक कुमार, पुलिस महानिदेशक अपराध एवं कानून व्यवस्था

 

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