राज्य में हर माह सैकड़ों कार्मिक बिन प्रमोशन के रिटायर
-उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच ने लगाया सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप
-बोले कार्मिक विभाग न्याय विभाग से जल्द विधिक राय मांग प्रमोशन से रोक हटाएं
-विकास में बाधक हड़तालों के प्रति जवाबदेही तय करने को लेेेकर मुखर मंच
देहरादून। उत्तराखंड में प्रमोशन (पदोन्नति) में रोक लगाए जाने से सैकड़ों कार्मिक हर माह प्रमोशन के बिना ही रिटायर (सेवानिवृत्त) हो रहे हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी स्थिति स्पष्ट कर चुका है। बावजूद विभागाध्यक्ष और नियुक्ति अधिकारी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच ने सरकार और विभागों के ढुलमुल रवैया पर नाराजगी जाहिर कर इसे सीधा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करार दिया है। इधर, प्रमोशन में लगी रोक हटाने को मंच ने जल्द न्याय विभाग से विधिक राय न लेने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।
राज्य में पदोन्नति में लगाई गयी रोक को हटाये जाने की मांग को लेकर कर्मचारियों के संगठन दो मार्च से हड़ताल पर हैं। इससे तमाम विकास कार्य पर प्रभावित हो रखे हैं। कमर्चारियों की हड़ताल से जनता भी परेशान है। यह स्थिति तब है जब उत्तराखंड सरकार की प्रभावी पैरोकारी के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सात फरवरी 2020 को स्पष्ट आदेश जारी कर दिया है। उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच ने कहा कि कोर्ट का जारी आदेश “जजमेन्ट इन रैम्प ” है, ऐसे में इस आदेश के बाद उत्तराखंड शासन का 11-09-2019 को पदोन्नति में रोक लगाने संबंधी आदेश स्पष्ट रूप से स्वत: ही निष्प्रभावी हो जाता है । इसके बावजूद पदोन्नति में लगाई गयी रोक पूरी तरह से गलत है। मंच विकास में बाधक हड़तालों के प्रति जवाबदेही तय कराये जाने को लेकर मुखर हैै।
उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच के मुख्य संयोजक रमेश चंद्र पाण्डे का कहना है कि जजमेंट इन रैम्प के रूप में 7 फरवरी को आये सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी यदि विभागाध्यक्षो/ नियुक्ति अधिकारियों के स्तर से पदोन्नति नहीं की जा रही हैं तो यह सीधे तौर पर अवमानना है ।
हड़ताल पर विराम लगाए सरकार
मंच ने कहा कि सरकार अगर कोरोना जैसी महामारी के प्रति जरा भी गंभीर है तो बिना वजह उत्पन्न टकराव व हड़ताल की स्थिति पर पूर्ण विराम लगाने की पहल करनी चाहिए |इसके लिए कार्मिक विभाग को चाहिए कि न्याय विभाग से विधिक व तकनीकी परामर्श लेकर औपचारिक रूप से कार्यकारी आदेश जारी करे | इस संवेदनशील मामले को बेहद गम्भीरता से लेते हुए मंच ने हड़ताल के प्रति जवाबदेही तय किये जाने पर भी बल दिया है ।